शिक्षा हर व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। लेकिन कई बार आर्थिक संसाधनों की कमी युवाओं के सपनों पर अवरोध बन जाती है। ऐसी परिस्थितियों में शैक्षिक ऋण एक वरदान की तरह काम करता है, जो युवाओं को उनकी शैक्षणिक यात्रा में सहायता प्रदान करता है।
बैंक शैक्षिक ऋण स्वीकृत करने के लिए सिबिल स्कोर को एक महत्वपूर्ण मापदंड मानते हैं। यह स्कोर व्यक्ति के वित्तीय इतिहास और ऋण चुकाने की क्षमता का प्रतिबिंब होता है। हालांकि, कई बार यह स्कोर युवाओं के शैक्षणिक अवसरों में बाधा बन जाता है।
केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए इस समस्या पर गहराई से विचार किया। न्यायाधीश पीवी कुन्हीकृष्णन ने स्पष्ट किया कि सिबिल स्कोर को शैक्षिक ऋण स्वीकृति के लिए एकमात्र मानदंड नहीं माना जा सकता।
न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि विद्यार्थी देश के भविष्य हैं। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने बैंकों को निर्देश दिया कि वे शैक्षिक ऋण आवेदनों को केवल कम सिबिल स्कोर के आधार पर अस्वीकार न करें।
याचिका में एक ऐसे विद्यार्थी का उदाहरण था जिसने दो ऋण लिए थे। एक ऋण में 16,667 रुपये बकाया था, जबकि दूसरे ऋण को बैंक ने अतिदेय घोषित कर दिया था। इन परिस्थितियों के कारण उसका सिबिल स्कोर प्रभावित हुआ था।
न्यायालय ने बैंकों से अपील की है कि वे ऋण आवेदनों को केवल तकनीकी पहलुओं के बजाय मानवीय दृष्टिकोण से देखें। विद्यार्थियों की शैक्षणिक महत्वाकांक्षाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
केरल हाईकोर्ट का यह निर्णय शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह फैसला न केवल व्यक्तिगत विद्यार्थियों को लाभ पहुंचाएगा, बल्कि देश के शैक्षणिक परिदृश्य को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा।